Saturday, May 19, 2018
Monday, May 14, 2018
देववृक्ष पारिजात
हमारा देश रहस्यों एवं रोमांचों से भरा है | यह देश देवी देवताओ ,ऋषि ,मुनियो की तपोस्थली और लीलास्थली रही है | ऐतिहासिक एवं पौराणिक घटनाओ के प्रमाण यहाँ के कण कण में व्याप्त है | भारत भूमि पर स्वयं ईश्वर ने अपनी लीलाये की है ,और उसके साक्ष्य अयोध्या,मथुरा ,वृन्दावन सब जगहों पर मौजूद है |
पारिजात,इसके बारे में भी पौराणिक कथाएँ है ,कहा जाता है की यह स्वर्ग से लाया वृक्ष है | उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले में इस वृक्ष के अस्तित्व में होने का पता चला | इस वृक्ष के बारे में कहा जाता है की ,समुद्रमंथन से इसकी उत्पति हुई ,जिसे देवराज इंद्र स्वर्ग में ले गए थे,और कालान्तर में श्रीकृष्ण द्वारा उनकी पत्नी सत्यभामा के जिद के कारण पृथ्वी पर लाना पड़ा | मन में इस वृक्ष को देखने की उत्सुकता जाग्रत हुई ,और हम निकल पड़े इसे देखने |
लखनऊ से इसकी दूरी करीब 70 किलोमीटर है | लखनऊ से रामनगर पहुंचकर हम दाहिनी ओर मोड़ से बद्दोसराय पहुँचते है ,और बद्दोसराय से 3 किलोमीटर की दूरी पर बहेल्या गांव है जहाँ यह वृक्ष है | वहां पहुँचते स्थानीय ग्रामीण जो अपनी जीविका का स्रोत इसी वृक्ष की बनाये है घेर लेते है,कि पूजा की सामग्री ले लो,वहां पूजा की जायेगी , जबकि वहां कोई पूजा नहीं होती| यह एक संरक्षित वृक्ष है ,जिलाधिकारी बाराबंकी के अनुसार इस वृक्ष को हानि पहुँचाना दंडनीय अपराध है | वृक्ष के चारो ओर घेरा बनाया गया है |यह एक विशाल वृक्ष है ,इसके तने की मोटाई लगभग 10 मिलीमीटर है | यह अफ्रीकन वृक्ष अड़ेंसोनिआ डिजीटाटा से मिलता जुलता है | इसकी पत्तियां 3 या 5 की संख्या में होती है | मान्यता है कि अज्ञातवास के समय माता कुंती की पूजा के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी,जो की कुंतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है| शिवलिंग पर पुष्प अर्पण हेतु अर्जुन ने यह वृक्ष स्वर्ग से लाकर अपने वाण से पाताल तक छिद्र कर इसे रोपित किया | इसका उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है |
इसके पुष्प का रंग सफ़ेद होता है ,जो की सूखने के बाद सुनहरे रंग का हो जाता है | आज भी कहा जाता है कि कुंतेश्वर महादेव में रोज सुबह एक पारिजात का पुष्प चढ़ा मिलता है | हमने इस वृक्ष के चारो ओर परिक्रमा की ,कहते है यहाँ जो भी किसी चीज़ की कामना करता है ,वह अवश्य पूरी होती है | हमने वहां कई विवाहित जोड़ो जोड़ो को देखा ,जो वहां पारिजात के दर्शन को आये थे | स्थानीय लोग अपने बहुत सारे धार्मिक संस्कार यही करते है |
अगर इन मान्यताओं को ध्यान न भी दिया जाए ,तो भी इस जगह पर आकर मानसिक शांति का अहसास होता है | इस पावन स्थली का दर्शन हर किसी को जरूर करना चाहिए | ये जगहे पर्यटन ही नहीं जीवन में नयी ताज़गी भी देती है |
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Sunday, May 6, 2018
यात्रा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की
मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥
आंध्र प्रदेश के पश्चिम भाग में कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला जंगल के मध्य श्री शैलम पहाड़ी पर स्थित ब्रह्मरम्भा मल्लिकार्जुन स्वामी का मंदिर है | इसके बारे में कहा जाता है की यह भारत का इकलौता ऐसा जहाँ शिव और शक्ति दोनों विराजमान है | यह शैव और शाक्त दोनों का तीर्थ है | यहाँ अदि शंकराचार्य ने अपनी शिवलहरी की रचना की थी | शिवपुराण के अनुसार शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय अपने माता पिता से रुठ कर श्रीशैल पर्वत निवास करने लगे | उन्हें मनाने के लिए शिव पार्वती ने भील ,भीलनी ,अर्जुन और मल्लिका का रूप धरा और वही पर्वत पर ज्योति रूप में विराजमान हो गए | कहते है अमावस्या ,शिवरात्रि के दिन शिव साक्षात् और देवी पार्वती पूर्णिमा को दर्शन देते है | इस ज्योतिर्लिंग की महिमा सुन जिज्ञासु मन दर्शन के लिए लालायित हो उठा | क्योकि हम तीन सहेलिया हैदराबाद घूमने के उद्देश्य से आयी थी ,तो सोचा क्यों न यहाँ के दर्शन भी कर लिए जाए| हैदराबाद से श्रीशैलम की दूरी २१६ किलोमीटर की है | सड़क मार्ग से बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है| हमने टैक्सी से जाना उचित समझा |वह पहुँचने में ४ घंटे १५ मिनट समय लगा |
पहाड़ो,जंगल के मनोरम दृश्यों को देखते हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे | रास्ते में ड्राइवर ने हमे एक मंदिर को इशारा किया की ये साक्षी गणपति का मंदिर है| यहाँ गणेश जी की काले रंग की प्रतिमा विराजमान है |
मान्यता है की साक्षी गणपति आने वाले तीर्थयात्रियों के आने के साक्षी है | १४ वी सदी के कवि श्रीनाथ जी ने अपने काशी खंड में उल्लेख किया है कि श्रीशैलम यात्रा के दौरान ऋषि अगस्त्य ने साक्षी गणपति के दर्शन किये थे | दर्शन का समय सुबह ६ बजे से रात्रि ९ बजे तक का है | साक्षी गणपति ,श्रीशैलम मंदिर और श्रीशैलम डैम के बीच स्थित है।
आगे चलकर हम अमराबाद टाइगर रिज़र्व से गुजरते है | यह जंगल काफी विस्तृत क्षेत्र में फैला है | जंगल के ही बीच में कुछ बस्तिया भी मिलती है रात्रि ९. के बाद जंगल में आने जाने का रास्ता बंद हो जाता है |आगे चलकर हमे चौराहा मिलता है ,जहा से देवस्थानम शुरू होता है ,वहां बड़ी सी मूर्ति स्थापित है |
मंदिर से कुछ दूरी पर हम उतरते है |मंदिर परिसर के ठीक सामने चप्पल,बैग ,मोबाइल रखने का स्थान है | हमने भी अपनी चप्पलें वह जमा कर दी,लेकिन मोबाइल नहीं जमा की इस लालच में कि शायद एक दो पिक्चर हमे खींचने को मिल जाये | अब हम टिकट काउंटर की तरफ चलते है ,वैसे फ्री दर्शन के लिए कोई टिकट नहीं था ,लेकिन शीघ्र दर्शन के लिए हमने काउंटर से टिकट लिए | हम जल्दी भु लभुलैया जैसे रास्ते से होते हुए ,एक खुली जगह पर पहुँच गए |यहाँ से फिर हम कतार में आगे बढ़ते है ,यहाँ मंदिर में बहुत सारे हॉल्स है | मुख्य मंडप विजयनगर राज्य के राजा हरिहर के द्वारा निर्मित था | मंदिर पूर्व मुखी है | मध्य मंडपम सारे खम्भे है | यहाँ एक प्रतिमा विराजमान है , पुजारी वाले श्रद्धालुओ से १० रूपए नारियल फोड़कर चढाने का था | मुख्य मंदिर मेंपहुँचते ही मंदिर कपाट अभिषेकम के लिए बंद था |
खाली में जैसा कि हमने पहले बताया था कि हमने अपना मोबाइल किया था | उसपर अपना कमाल दिखाने लगे | तबतक सुरक्षा कर्मी वहाँ आकर मोबाइल तस्वीरों को हटा दिए और धमकी देने लगे की में मोबाइल ख़राब कर देंगे | खैर आधे घंटे के बाद मंदिर का द्वार खुलता है,
और हम मंदिर में प्रवेश करते है | द्वार पैर ही नटराज की की मूर्ति दिखाई देती है | हम बढ़ते है वहाँ गर्भगृह बहुत छोटा था,जिससे पास दर्शन मुश्किल है ,दूर से ही हमने प्रभु दर्शन किये ,चूँकि हम अप्रैल के पहले सप्ताह थे इसलिए ज्यादा भीड़ नहीं थी ,अन्यथा यह दर्शन कुछ सेकंड का ही होता है दर्शन पाकर मन भावविभोर हो गया ,शायद हमारा बुलावा प्रभु की कृपा का ही परिणाम था | मंदिर से निकल कर हम वह की भव्यता स्थापत्य कला को देखकर आनंदित हो उठे | यहाँ सहस्त्र लिंग और पांडवो द्वारा स्थापित लिंग मौजूद है | मंदिर परिसर दिन तेज़ धूप के कारण जल रहा था ,इसलिए ज्यादा देर वह घूमना मुश्किल था | वही ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा की मूर्ति भी स्थापित है |
तत्पश्चात हम परिसर में बने ब्रहमरंभा मंदिर की ओर चले | यहाँ माँ की मूर्ति अद्भुत छटा देखकर रोम रोम आनंदित हो उठा | कतारों में ही दर्शन हो रहे थे |दर्शन कर हम बाहर आ गए |
आगे प्रसाद वितरण हो रहा था ,हमने वहाँ से प्रसाद लिया और बाहर आ गए | हमारी टैक्सी हमारा इंतज़ार कर रही थी | यादो को समेटे हम हैदराबाद के रवाना हो गए |
यह यात्रा भक्त और भगवान के बीच अपने प्रेम को दर्शाने का था | ये गीत गुनगुनाने का दिल करता है की। ... चल हंसा उस देश जहां मेरे पिया बसे | यानी आत्मा का परमात्मा से मिलन |
एक यात्रा समाप्त होती है,आगे न मंजिल का पता न रास्ते का | फिर मिलेंगे। ....
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