Thursday, July 12, 2018

रुबाइयाँ

 दिल की आवाज़ है अब जुबाँ खोलिये|
 वक़्त का मशवरा है चुप हो बैठिए ||    
 झूठ तो झूठ है ,सच न होगा कभी| 
 दोनों को एक तराजू में न तोलिये ||
  कम न तासीर होगी कभी जहर की | 
  बेकार है ,चाहे जितना शहद घोलिये|| 
  दोस्ती की तो ,उम्मीद ही कुछ नहीं | 
  दुश्मनी की जुबां तो न बोलिये || 
   तुम भी मजबूर थे ,हम भी मजबूर है | 
   तुम उधर रो लिए ,हम इधर रो लिए ||  

Saturday, May 19, 2018

प्राणिक हीलिंग ,चिकित्सा की वैकल्पिक प्रणाली

  प्राणिक हीलिंग एक  प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है,जिसके विषय  में आज भी लोग अनजान हैं | प्राचीन काल से ही घर में माताएं अपने बच्चों के रोने पर नज़र उतारने का उपक्रम किया करती है,और कुछ देर में रोता  बच्चा ठीक हो जाता है| इस तरह बच्चे का चुप होना कोई जादू या चमत्कार नहीं होता ,बल्कि इसमें भी  विज्ञानं है ,|इसे समझने के लिए हमे अपने शरीर के बारे में थोड़ा विस्तार से समझना होगा ,| हमारे भौतिक शरीर के चारो ओर एक ऊर्जा या प्रकाश का शरीर होता है ,जिसे आभामंडल या औरा कहते है | यह हमारे जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथ होता होता है सर्वप्रथम नकारात्मक विचार और बीमारियाँ इसी ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है | और बाद में हमारे भौतिक शरीर को अपनी गिरफ्त ले लेती है,जिससे हम बीमार ,या अवसाद में आ जाते हैं | हमारा ऊर्जा शरीर भौतिक शरीर को भेदकर 45इंच तक फैला रहता है ,|                                                                                                                 

प्राणिक हीलिंग द्वारा उपचार का श्रेय मास्टर चोआ कोक  सुई को जाता है ,जिन्होंने आम धारणाओ को वैज्ञानिक आधार दिया ,वे चीनी मूल के फिलीपींस  नागरिक थे ,और केमिकल इंजीनियर थे | आज ये विधा पूरे विश्व में प्रसिद्व है| उन्होंने बताया जिस तरह हमारे शरीर में नसें  होती हैं और उसमे रक्त प्रवाहित होता है ,ठीक उसी तरह ऊर्जा शरीर में प्राणशक्ति प्रवाहित होती है ,प्राणशक्ति को ग्रहण करने हेतु चक्र होते है | हमारे शरीर में सात चक्र है | प्राणशक्ति के सुचारु प्रवाह द्वारा हम भौतिक शरीर में आने वाली बीमारियों को दूर भगा सकते है |            

 प्राणिक ऊर्जा के स्रोत                                                                                                                         1  -सौर प्राणशक्ति                                                                                                               2 -वायु प्राण                                                                                                                        3-भूमि प्राण                                                      

 ये क्रमशः सूर्य से , वायु प्राण श्वसन क्रिया के माध्यम से फेफड़ो द्वारा ग्रहण की जाती है ,जबकि भू प्राण पैरो के तलवो से प्राप्त किया जाता है | उपचार के लिए प्राणशक्ति को दूसरे व्यक्ति में प्रक्षेपित किया जाता है | प्राणिक उपचारक जिसका जिसका आतंरिक आभामंडल 1से 3 मीटर बड़ा हो वह किसी भी बीमार व्यक्ति को आसानी से ठीक कर-सकता है | इस विधा में उपचारक दूर बैठे रोगी को अपनी सहायता पहुंचा सकता है ,अर्थात दूर से रोगी को पर्याप्त रूप से ठीक कर सकता है | इससे जटिल से जटिल बीमारिया ठीक हो सकती है|                        

   प्राणिक हीलिंग के सिद्धांत                                                                                                1-स्वआरोग्य प्राप्ति  

 2 - प्राण शक्ति   बढ़ाना                        

 प्रथम सिद्धांत में सामान्यतः शरीर में स्वयं उपचार की शक्ति  है ,यदि कही कट जाए तो वो स्वतः ही ठीक हो जाता है |                                                                                             दूसरे सिद्धांत में प्रभावित अंगो या शरीर की उपचार क्रिया को प्राणशक्ति द्वारा बढ़ाया जाता है |                    

प्राणिक उपचार की आवश्यकता  एक डॉक्टर शरीर में दिखाई देने वाले लक्षण को देखकर दवा देता है ,जबकि प्राणिक उपचारक रोग को मूल जड़ से ख़तम करता है |          प्राणिक उपचार द्वारा सभी प्रकार के शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रोगो का निदान किया जा सकता है |                                                                                                 अंत में महात्मा गाँधी के कथन -                                                                                  सबसे अच्छा स्वर्णिम नियम यह है की हर चीज़ को कारण व अनुभव के प्रकाश में जांचे -परखें | इस ओर ध्यान न दें की वह कहाँ से आयी है या आती है | 

Monday, May 14, 2018

देववृक्ष पारिजात


 हमारा देश रहस्यों एवं रोमांचों से भरा है | यह देश देवी देवताओ ,ऋषि ,मुनियो की तपोस्थली और लीलास्थली  रही  है | ऐतिहासिक एवं पौराणिक घटनाओ के प्रमाण यहाँ के कण कण में व्याप्त है | भारत भूमि पर स्वयं ईश्वर ने अपनी लीलाये की है ,और उसके साक्ष्य अयोध्या,मथुरा ,वृन्दावन सब जगहों पर  मौजूद है |

                   पारिजात,इसके बारे में भी पौराणिक कथाएँ है ,कहा जाता है की यह स्वर्ग से लाया वृक्ष है | उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले में इस वृक्ष के अस्तित्व में होने का पता चला | इस वृक्ष के बारे में कहा जाता है की ,समुद्रमंथन से इसकी उत्पति हुई ,जिसे देवराज इंद्र स्वर्ग में ले गए थे,और कालान्तर में श्रीकृष्ण द्वारा उनकी पत्नी सत्यभामा के जिद के कारण पृथ्वी पर लाना पड़ा | मन में इस वृक्ष को देखने की उत्सुकता जाग्रत हुई ,और हम निकल पड़े इसे देखने |

             लखनऊ से इसकी दूरी करीब 70 किलोमीटर है | लखनऊ से रामनगर पहुंचकर हम दाहिनी ओर मोड़ से बद्दोसराय पहुँचते है ,और बद्दोसराय से 3 किलोमीटर की दूरी पर बहेल्या गांव है जहाँ यह वृक्ष है  | वहां पहुँचते स्थानीय ग्रामीण जो अपनी जीविका का स्रोत इसी वृक्ष की बनाये है घेर लेते है,कि पूजा की सामग्री ले लो,वहां पूजा की जायेगी , जबकि वहां कोई पूजा नहीं होती| यह एक संरक्षित वृक्ष है ,जिलाधिकारी बाराबंकी के अनुसार इस वृक्ष को हानि पहुँचाना दंडनीय अपराध है | वृक्ष के चारो ओर घेरा बनाया गया है |यह एक विशाल वृक्ष है ,इसके तने की मोटाई लगभग 10 मिलीमीटर है | यह अफ्रीकन वृक्ष अड़ेंसोनिआ डिजीटाटा से मिलता जुलता है | इसकी पत्तियां 3 या 5 की संख्या में होती है | मान्यता है कि अज्ञातवास के समय माता कुंती  की पूजा के लिए शिवलिंग की स्थापना की थी,जो की कुंतेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है| शिवलिंग पर पुष्प अर्पण हेतु अर्जुन ने यह वृक्ष स्वर्ग से लाकर अपने वाण से पाताल तक छिद्र कर इसे रोपित किया | इसका उल्लेख इस शिलालेख में मिलता है | 

इसके पुष्प का रंग सफ़ेद होता है ,जो की सूखने के बाद सुनहरे रंग का हो जाता है | आज भी कहा जाता है कि कुंतेश्वर महादेव में रोज सुबह एक पारिजात का पुष्प चढ़ा मिलता है | हमने इस वृक्ष के चारो ओर परिक्रमा की ,कहते है यहाँ जो भी किसी चीज़ की कामना करता है ,वह अवश्य पूरी होती है |  हमने वहां कई विवाहित जोड़ो जोड़ो को देखा ,जो वहां पारिजात के दर्शन को आये थे | स्थानीय लोग अपने बहुत सारे धार्मिक संस्कार यही करते है | 

               अगर इन मान्यताओं को ध्यान न भी दिया जाए ,तो भी इस जगह पर आकर मानसिक शांति का अहसास होता है | इस पावन स्थली का दर्शन हर किसी को जरूर करना चाहिए | ये जगहे पर्यटन ही नहीं जीवन में नयी ताज़गी भी देती है |

 

 


Sunday, May 6, 2018

यात्रा मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की

                                            

मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं
श्रोत्रजिह्वे घ्राणनेत्रे
व्योम भूमिर्न तेजो वायुः

चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥१॥

    आंध्र प्रदेश के पश्चिम भाग में कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला जंगल के मध्य श्री शैलम  पहाड़ी पर  स्थित ब्रह्मरम्भा मल्लिकार्जुन स्वामी का मंदिर है | इसके बारे में कहा जाता है की यह भारत का इकलौता ऐसा  जहाँ शिव और शक्ति दोनों विराजमान है | यह शैव और शाक्त दोनों का तीर्थ है | यहाँ अदि शंकराचार्य ने अपनी शिवलहरी  की रचना की थी | शिवपुराण के अनुसार शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय अपने माता पिता से रुठ कर श्रीशैल पर्वत  निवास करने लगे | उन्हें मनाने के लिए शिव पार्वती ने भील ,भीलनी ,अर्जुन और मल्लिका का रूप धरा और वही पर्वत पर  ज्योति रूप में विराजमान हो गए | कहते है अमावस्या ,शिवरात्रि के दिन शिव साक्षात्  और देवी पार्वती  पूर्णिमा को दर्शन देते है | इस ज्योतिर्लिंग की महिमा सुन जिज्ञासु मन दर्शन  के लिए लालायित हो उठा | क्योकि हम तीन सहेलिया हैदराबाद घूमने के उद्देश्य से आयी थी ,तो सोचा क्यों न यहाँ के दर्शन  भी कर लिए जाए| हैदराबाद से श्रीशैलम की दूरी २१६ किलोमीटर की है | सड़क मार्ग से बस और टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है| हमने टैक्सी से जाना उचित समझा |वह पहुँचने में ४ घंटे १५ मिनट  समय लगा |

पहाड़ो,जंगल के मनोरम दृश्यों को देखते हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहे थे | रास्ते में ड्राइवर ने हमे एक मंदिर को इशारा किया की ये साक्षी  गणपति का मंदिर है| यहाँ गणेश जी की काले  रंग की प्रतिमा विराजमान है |

मान्यता है की साक्षी  गणपति आने वाले तीर्थयात्रियों के आने के साक्षी  है | १४ वी सदी के कवि  श्रीनाथ  जी ने अपने काशी  खंड में उल्लेख किया है कि श्रीशैलम यात्रा के दौरान ऋषि अगस्त्य ने साक्षी  गणपति के दर्शन किये थे |  दर्शन का समय सुबह ६ बजे से रात्रि ९ बजे तक का है | साक्षी  गणपति ,श्रीशैलम मंदिर और श्रीशैलम डैम के बीच स्थित है।

 आगे चलकर हम अमराबाद टाइगर रिज़र्व से गुजरते है | यह जंगल काफी विस्तृत क्षेत्र  में फैला है | जंगल के ही बीच में कुछ बस्तिया भी मिलती है रात्रि ९. के बाद जंगल में आने जाने  का रास्ता बंद हो जाता है |आगे चलकर हमे चौराहा मिलता है ,जहा से देवस्थानम शुरू  होता है ,वहां बड़ी सी मूर्ति  स्थापित है |

मंदिर से कुछ दूरी पर हम उतरते है |मंदिर परिसर के ठीक सामने चप्पल,बैग ,मोबाइल रखने का स्थान है | हमने भी अपनी चप्पलें वह जमा कर दी,लेकिन मोबाइल नहीं जमा की इस लालच में कि शायद एक दो पिक्चर हमे खींचने को मिल जाये | अब हम टिकट काउंटर की तरफ चलते है ,वैसे फ्री दर्शन के लिए कोई टिकट नहीं था ,लेकिन शीघ्र  दर्शन के लिए हमने काउंटर से टिकट लिए | हम जल्दी भु लभुलैया जैसे रास्ते से होते हुए ,एक खुली जगह पर  पहुँच गए |यहाँ से फिर हम कतार  में आगे बढ़ते है ,यहाँ  मंदिर  में बहुत सारे हॉल्स है | मुख्य मंडप विजयनगर राज्य के राजा हरिहर के द्वारा निर्मित था | मंदिर पूर्व मुखी है | मध्य मंडपम  सारे खम्भे है |  यहाँ एक  प्रतिमा विराजमान है , पुजारी  वाले श्रद्धालुओ से १० रूपए   नारियल फोड़कर चढाने का  था | मुख्य मंदिर मेंपहुँचते ही  मंदिर  कपाट अभिषेकम के लिए बंद था |

खाली   में जैसा कि हमने पहले बताया था कि  हमने अपना मोबाइल  किया था | उसपर अपना कमाल दिखाने  लगे | तबतक सुरक्षा कर्मी वहाँ  आकर मोबाइल  तस्वीरों को हटा दिए और धमकी देने लगे की में मोबाइल ख़राब कर देंगे | खैर आधे घंटे के बाद मंदिर का द्वार खुलता है,

और हम मंदिर में प्रवेश करते है | द्वार पैर ही नटराज की की मूर्ति दिखाई देती है | हम  बढ़ते है वहाँ गर्भगृह बहुत छोटा था,जिससे पास  दर्शन मुश्किल है ,दूर से ही हमने प्रभु  दर्शन किये ,चूँकि हम अप्रैल के पहले सप्ताह  थे इसलिए ज्यादा  भीड़ नहीं थी ,अन्यथा यह दर्शन कुछ सेकंड का ही होता है  दर्शन  पाकर मन भावविभोर हो गया ,शायद हमारा बुलावा प्रभु की कृपा का  ही परिणाम था | मंदिर से निकल कर हम वह की भव्यता  स्थापत्य कला को देखकर आनंदित हो उठे | यहाँ सहस्त्र लिंग और पांडवो द्वारा स्थापित  लिंग मौजूद है | मंदिर परिसर दिन  तेज़  धूप के कारण जल रहा था  ,इसलिए ज्यादा देर वह घूमना  मुश्किल था | वही ऋषि अगस्त्य की  पत्नी लोपामुद्रा की मूर्ति भी स्थापित है |

तत्पश्चात हम परिसर में बने ब्रहमरंभा मंदिर की ओर चले | यहाँ माँ की मूर्ति  अद्भुत छटा  देखकर रोम रोम आनंदित हो उठा |  कतारों में ही दर्शन हो रहे थे |दर्शन कर हम बाहर आ गए |

  आगे प्रसाद वितरण हो रहा था ,हमने वहाँ से प्रसाद लिया और बाहर आ गए | हमारी टैक्सी हमारा इंतज़ार कर रही थी | यादो को समेटे हम हैदराबाद के  रवाना हो गए |

यह यात्रा भक्त और भगवान के बीच अपने प्रेम को दर्शाने का था | ये गीत गुनगुनाने का दिल करता है की। ... चल हंसा उस देश जहां मेरे पिया बसे | यानी आत्मा का परमात्मा से मिलन |

एक यात्रा समाप्त होती है,आगे न मंजिल का पता न रास्ते का | फिर मिलेंगे। ....  

                                  

Sunday, April 15, 2018

यात्रा ईशा योग केन्द्र

यात्रा ईशा योग केन्द्र ,एक दिन ईशा योग केन्द्र में 

सदगुरु से मिलने की इच्छा मुझे ईशा योग केंद्र खींच रही थी | हैदराबाद से कोयंबटूर हमने बस से 40 km की दूरी पर सदगुरु   द्वारा स्थापित ईशा योग केंद्र है हमने कोयंबटूर से टैक्सी ली ओर  कोयंबटूर  की भीड़ वाली सड़को से गुजरते सुपारी और नारियल के वृक्षों को निहारते हम पश्चिम की  ओर  बढ़ते है, जहा से दक्षिण   भारत का ग्रामीण  इलाका शुरू होता है तभी आपको वैलयांगिरी   की पहाड़ियां  दिखाई देती है चारो ओर ख़ामोशी सी छाई रहती है | आख़िरकार टैक्सी में तमिल गानो और प्रकृति का लुफ्त उठाते हम अपनी मंज़िल पहुँच जाते है | सामने गेट के सर्प की भव्य आकृति देख हम सब भाव विभोर हो गए |  वहाँ सुरक्षा कर्मी हमारे आने का मकसद पूछता है और हमसे सारी जानकारी लेकर वेलकम सेंटर की ओर भेज देता है वहा हमारा स्वागत अभिवादन नमस्कारम  शब्द से होता है | हमने पहले से ही अपने रहने के लिए कॉटेज बुक करा रखा  था | वह रुकने की व्यवस्था के लिए ३ तरह के कॉटेज है हमने नदी कॉटेज बुक कराया था | पहले वेलकम सेंटर में  एक वाटरप्रूफ रिस्ट बैंड दिया  गया ,जो की परिसर में रहते हमेशा पहनना  होता है | एक टाइम टेबल दिया  गया जिसमे ईशा सेंटर हो रहे कार्यक्रमों की समय का लेख था | वहाँ सुबह 5 :30 से कार्यक्रम शुरू हो जाता | फिर हमे बताया जाता है की यहाँ दो कुंड है सूर्य कुंड और चंद्र कुंड है | बताया गया की मंदिर में प्रवेश  करने से पहले इन कुंड में स्नान करना अच्छा होता है | यह कुंड जमीन से ३५ ft निचे एक तालाब है जिसके पानी को ठोस  किये गए पारे के लिंग से ऊर्जा वान बनाया गया है | इसमें स्नान करने के बाद अनकही मानसिक और शारीरिक ताजगी के साथ ग्रहण शीलता का भी एहसास होता है इसके बाद 7 :40 am में लिंग भैरवी की आरती में हम शामिल हुए वहा बहुत सारे विदेशी पूजा मैडिटेशन और ध्यान करते दिखाई देते है वहा की पूजा महिलाओ द्वारा संपन्न  की जाती है |

लिंग भैरवी

वहा हमे नीम की पत्तियां  और फूल दिए जाते है मंदिर के बाहर दस रूपए में पायसम भी दिया जाता है जो की बहुत  स्वादिष्ट   मंदिर का प्रसाद  होता है |


      JUST SITTING SILENT FOR A FEW MINUTES WITHIN THE SPHERE OF DHYANLINGA IS ENOUGH TO MAKE EVEN THOSE  UNAWARRE OF MEDITATION EXPERIENCE A STATE OF DEEP MEDITATIVENESS

                                                      - SADGURU

अब हम मुख्य मंदिर की और बढ़ते है |मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर सर्वधर्म स्तम्भ है | इस स्तम्भ में सभी धर्मों के चिन्ह  बने है | यह काफी आकर्षक और धार्मिक समभाव  की प्रेरणा देता है | और अब हम ध्यानलिंग के आँगन में घुसते हैं , बगल की दीवारों पर दक्षिण  भारतीयों संतो के जीवन की झांकियां मिलती है, वालंटियर ध्यानंलिंगा में लोगो को बैच के हिसाब से भेज रहे थे | मैंने सुन रखा  था की ये गुम्बदाकार बडा हॉल बिना लोहे कंक्रीट का बना है |वास्तव में ईंट मिटटी क्ले  चुना और कुछ हर्ब्स से मिलाकर बनाया गया है \ये ध्यान के लिए एकदम सटीक बनाया गया है|सामने उस गुम्बदाकार हॉल में १३ फुट ऊँचा ग्रेनाइट का गोलाकार स्तम्भ लिंग के रूप में में दिखाई देता है | जिसे देखने की जिज्ञासा थी जिसमे बारे में हमने सुना था की ये ध्यानलिंग सद्गुरु की ३ जन्मों  का प्रयास है | इस ध्यानलिंग में सातों  चक्रो को ऊर्जावान करके इसी में बाँध दिया गया है | 


बैक व्यू ऑफ़ ध्यान लिंग
सर्व धर्म स्तम्भ


ध्यान लिंग

इसकी स्याह काली सतह पर सात छल्ले करीने से जडे है |लिंग के आधार पर, सात कुंडलियों वाले पत्थर के विशाल सर्प की आकृति बनी हुई है| यहाँ दीवारों के बीच २७ आभा गुफाये है,इसमें बैठकर आप ध्यान कर सकते है | 9 . 55 से 10 . 40 का समय नास्ता/लंच का होता है | जो किसी भक्त द्वारा अन्नदान  किया जाता है | 

  ध्यानलिंग से आगे निकल कर नंदी की विशाल प्रतिमा का दर्शन  होता है | यह प्रतिमा  5 फुट की मेटल की बानी है जिसके अंदर  हर्ब्स भरे गए है | यह स्याह काले रंग का है |


नंदी

 आप इसे नहीं छू सकते | उसके आगे एक सरोवर है जिसमे कमल और लिली के अनेक रंगो वाले फूल खिले हुए थे | फिर हम आगे बढे | जहा पुरुषो के स्नान  लिए बना सूर्यकुंड बना  है | उसमे आगे कुछ ईशा केंद्र से जुड़ी दुकाने थी , जिसमे दवाई ,शहद ,सीडी ,चाय बिक रहे है | क्योकि हमारे पास समय कम था, इस लिए कम समय में हमे सबकुछ  देखना और समझना था | बाहर  जाने के दूसरे गेट से हम बाहर आ गए ,वहाँ  से कुछ  ही दूर पर प्रसिद्ध आदियोगी की प्रतिमा थी | हमने बैलगाड़ी की सवारी ली और वहां  पहुच गए |अद्वित्य  ,अनुपम प्रतिमा देखकर हम रोमांचित  हो गए | मेरे पास शब्द नहीं बयां करने को की आदियोगी की इस प्रतिमा को  कैसे बखान करुँ  | 112  फ़ीट ,4  इंच ऊँची 24. 9 मीटर चौड़ी और 44 . 9 मीटर लम्बी मूर्ति ,दूर से ही अपनी भब्यता का अहसास दिलाती है | यह दुनिया में भगवान  शंकर  की सबसे ऊँची प्रतिमा है | इस प्रतिमा  को पूरी तरह से स्टील से बनाया  गया है | इसका वजन ५०० टन है इसके अंदर तिल के बीज हल्दी  पवित्र भस्म ,विभूति ,खास तरह के तेल ,रेत,अलग तरह की मिटटी भरी है | 

आदि योगी

यहाँ बिताये हर पल मेरी जिंदगी का सबसे अविस्मरणीय पल है | लेकिन सफर का अंत करना ही होता है,इसलिए इन यादों  को  समेटे इस विश्वास के साथ कि मैं जल्द ही वापस आऊँगी  शायद  कुछ महीनो ,सालो के बाद..