
शनिदेव न्याय के देवता कहलाते है | वे महादेव के प्रिय भी थे | अधिक अधिकार और शक्ति के कारण वे बहुत अहंकारी हो गए | एक बार की बात है उन्हें हनुमान जी के बारे में पता चला कि वो बहुत शक्तिशाली हैं | बस फिर क्या था ,पहुँच गए हनुमान जी के पास | उस समय श्री राम जी ने उन्हें रामसेतु की देख रेख का प्रभार दिया था ,वो वहीं पुल के पास बैठ कर राम जी का भी ध्यान कर रहे थे | अहंकारवश शनि देव ने इंतज़ार करना भी मुनासिब नहीं समझा ,उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा | हनुमान जी अपनी आराधना में लीन रहे | शनि देव बार बार उन्हें परेशान करते रहे ,अंत में हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ में बाँध लिया और धीरे धीरे कसना शुरु कर दिया | शनि देव ने अपने आप को बहुत छुड़ाने का प्रयास किया परन्तु असफल रहे | अंत में हनुमान जी ने उन्हें पुल पर पटक दिया,पत्थर से चोट लगने के कारण रक्त स्राव होने लगा | शनि देव कराहने लगे,उनका अहंकार चूर चूर हो गया | उन्होंने हनुमान जी से अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी | हनुमान जी ने कहा ,आप कभी भी रामभक्तों को परेशान नहीं करोगे | चूँकि शनि देव को चोट लगी थी ,इसलिए उन्होंने अनुरोध किया की उनके उप्पेर जो भक्त सरसो का तेल अर्पित करेगा ,वो उससे शीघ्र खुश होंगे ,क्योकि तेल से वे राहत महसूस करेंगे | तब से तेल चढाने की परंपरा शुरू हुई | इससे शनिदेव प्रसन्न होते है और भक्तों की हर मुराद पूरी करते है |
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